. पटना में बड़ा पुल हादसा — गंगा सेतु के एक हिस्से के गिरने से मचा हड़कंप, जांच के आदेश, राजनीति गरमाई।।

पटना में बड़ा पुल हादसा — गंगा सेतु के एक हिस्से के गिरने से मचा हड़कंप, जांच के आदेश, राजनीति गरमाई।।

 🚨 पटना में बड़ा पुल हादसा — गंगा सेतु के एक हिस्से के गिरने से मचा हड़कंप, जांच के आदेश, राजनीति गरमाई


बिहार की राजधानी पटना आज सुबह एक बड़ी और दर्दनाक घटना का गवाह बना।

गंगा नदी पर बन रहे नए पुल का एक हिस्सा अचानक गिर गया, जिससे पूरे राज्य में सनसनी फैल गई।

यह हादसा सुबह करीब 9:15 बजे हुआ, जब निर्माण कार्य चल रहा था और कई मजदूर उस समय साइट पर मौजूद थे।

घटना के बाद प्रशासन, एनडीआरएफ और पुलिस की टीमें तुरंत मौके पर पहुंचीं, राहत और बचाव कार्य शुरू कर दिया गया।




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🔹 कैसे हुआ हादसा


प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, पुल का यह हिस्सा (लगभग 150 मीटर लंबा सेक्शन) निर्माण के अंतिम चरण में था।

इंजीनियरिंग टीम के अनुसार, अचानक एक बड़ा गर्डर सपोर्ट टूट गया और देखते ही देखते पूरा हिस्सा नदी में समा गया।

मजदूरों ने भागकर अपनी जान बचाई, लेकिन कुछ लोग नीचे गिर गए जिन्हें गंभीर चोटें आई हैं।


अब तक 6 मजदूरों के घायल होने की पुष्टि हुई है, जबकि एक व्यक्ति लापता बताया जा रहा है।


स्थानीय निवासी रमेश चौधरी ने बताया —


> “हमने जोरदार धमाका सुना, फिर देखा कि पुल का हिस्सा पानी में जा गिरा। चारों तरफ धूल और चीख-पुकार मच गई।”





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🔹 सरकार ने जांच के आदेश दिए


घटना के बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने तत्काल उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए।

उन्होंने मुख्य सचिव और सड़क निर्माण विभाग के अधिकारियों के साथ आपात बैठक की।

नीतीश ने कहा —


> “यह एक गंभीर घटना है। जो भी जिम्मेदार होगा, उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी। लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी।”




उन्होंने पीड़ित परिवारों के लिए 5 लाख रुपये मुआवजे की घोषणा भी की और घायलों का मुफ्त इलाज कराने का आदेश दिया।



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🔹 राजनीतिक बयानबाज़ी शुरू


घटना के कुछ ही घंटों के भीतर विपक्ष ने सरकार पर निशाना साधना शुरू कर दिया।

तेजस्वी यादव ने एक्स (ट्विटर) पर लिखा —


> “नीतीश कुमार की सरकार में पुल गिरना अब सामान्य बात हो गई है। भ्रष्टाचार और घटिया निर्माण ने बिहार की साख को गिरा दिया है।”




वहीं भाजपा नेताओं ने भी ठेकेदारों और अधिकारियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि “जनता का पैसा पानी में बहा दिया गया।”

राजनीतिक माहौल इतना गरम हो गया कि यह घटना सिर्फ इंजीनियरिंग विफलता नहीं, बल्कि प्रशासनिक जवाबदेही का प्रतीक बन गई।



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🔹 स्थानीय लोगों का गुस्सा


पटना और आसपास के इलाकों में लोगों का गुस्सा फूट पड़ा।

लोगों ने सड़क जाम कर विरोध प्रदर्शन किया और प्रशासन से सवाल किया कि “आखिर कितने पुल और गिरेंगे?”

एक स्थानीय व्यापारी ने कहा —


> “हर बार कहा जाता है कि जांच होगी, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकलता। जनता का भरोसा टूट गया है।”




लोगों का कहना है कि यह वही पुल है जिसका निर्माण 2018 से चल रहा था और अब तक तीन बार उसकी डेडलाइन बढ़ाई जा चुकी थी।



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🔹 तकनीकी टीम की प्रारंभिक रिपोर्ट


घटना के बाद विशेषज्ञों की टीम ने मौके का दौरा किया।

प्रारंभिक रिपोर्ट के मुताबिक, गर्डर जोड़ों में फॉल्ट और सपोर्ट बीम के एंगल में असंतुलन मुख्य कारण हो सकते हैं।

इंजीनियरों का कहना है कि निर्माण के दौरान स्ट्रक्चरल लोड टेस्टिंग पूरी तरह नहीं की गई थी।

अगर ऐसा पाया गया, तो ठेकेदार और निर्माण एजेंसी दोनों पर गंभीर कार्रवाई तय है।



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🔹 गंगा नदी में फैला मलबा और पर्यावरण चिंता


गंगा के इस हिस्से में मलबा गिरने से नौका संचालन और मछुआरों की गतिविधियां रुक गई हैं।

पर्यावरण विभाग ने कहा कि गंगा की धारा में बड़े पैमाने पर कंक्रीट और स्टील के टुकड़े चले गए हैं, जिन्हें निकालना ज़रूरी है।

विशेष टीम को बुलाकर क्लीनिंग ऑपरेशन चलाया जा रहा है ताकि प्रदूषण न फैले।



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🔹 राजनीतिक प्रतिक्रिया पूरे देश में


यह पुल हादसा सिर्फ बिहार तक सीमित नहीं रहा — दिल्ली तक इसकी गूंज पहुंची।

कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि “यह हादसा सिर्फ एक पुल नहीं, बल्कि सिस्टम के गिरने का प्रतीक है।”

वहीं भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने कहा कि “कांग्रेस और राजद के समय में शुरू हुए ठेकेदार नेटवर्क की गड़बड़ियों का असर आज दिख रहा है।”


राजनीतिक विश्लेषक प्रो. अजय मिश्र ने कहा —


> “बिहार में पुल गिरना अब सत्ता बदलने का मुद्दा बन चुका है। जनता अब जवाब मांग रही है।”





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🔹 सामाजिक प्रभाव — डर, अविश्वास और गुस्सा


हादसे के बाद लोगों में भारी डर और निराशा देखी जा रही है।

जो पुल जनता को जोड़ने के लिए बनाया जा रहा था, वही अब सिस्टम की नाकामी का प्रतीक बन गया है।

लोगों का कहना है कि अगर सरकारें सिर्फ शिलान्यास करें और काम की निगरानी न करें, तो विकास सिर्फ कागज़ों पर रह जाएगा।


एक छात्रा ने कहा —


> “हम हर साल करोड़ों का बजट सुनते हैं, लेकिन जब पुल गिरता है तो लगता है कि सब दिखावा है।”





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🔹 मीडिया और सोशल मीडिया की भूमिका


घटना के तुरंत बाद सोशल मीडिया पर वीडियो और फोटो वायरल हो गए।

#PatnaBridgeCollapse और #BiharHadal जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे।

लोगों ने सरकार से जवाबदेही की मांग की, जबकि कुछ ने राहतकर्मियों के प्रयासों की सराहना की।


पत्रकारों और यूट्यूब चैनलों ने मौके से लाइव कवरेज की, जिससे घटना राष्ट्रीय मुद्दा बन गई।

एनडीआरएफ की टीम के वीडियो में दिखा कि मजदूरों को क्रेन और बोट के जरिए सुरक्षित बाहर निकाला जा रहा था।



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🔹 पुल की पृष्ठभूमि


यह पुल पटना को उत्तर बिहार से जोड़ने वाला “नया गंगा सेतु” प्रोजेक्ट था।

करीब 1,700 करोड़ रुपये की लागत से बन रहा यह पुल 2026 में पूरा होना था।

इसे बनाने वाली कंपनी का नाम एबीसी इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड बताया जा रहा है, जो पहले भी एक पुल निर्माण विवाद में फंस चुकी है।

अब सरकार ने कंपनी को नोटिस जारी कर दिया है और उसके अधिकारियों को पूछताछ के लिए बुलाया गया है।



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🔹 राजनीति बनाम जिम्मेदारी


अब सवाल सिर्फ पुल के गिरने का नहीं, बल्कि सिस्टम की विश्वसनीयता का है।

राजनीतिक दल एक-दूसरे पर आरोप लगा रहे हैं, लेकिन जनता को जवाब चाहिए कि आखिर करोड़ों का पैसा कहां जा रहा है?

यह घटना बताती है कि विकास सिर्फ आंकड़ों का नहीं, निगरानी और पारदर्शिता का मामला भी है।



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🌟 निष्कर्ष:


पटना का यह पुल हादसा सिर्फ एक इंजीनियरिंग गलती नहीं, बल्कि शासन, जवाबदेही और ईमानदारी की परीक्षा है।

जहाँ एक तरफ मजदूरों का दर्द और जनता का गुस्सा है, वहीं दूसरी तरफ राजनीति

क नफे-नुकसान की गणना भी चल रही है।

यह हादसा हमें यह सोचने पर मजबूर करता है —

क्या हम विकास की असली परिभाषा समझ पाए हैं, या सिर्फ उसके पोस्टर बना रहे हैं?

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