📰 सहरसा की आवाज़: विकास, दर्द और संघर्ष की कहानी
(विशेष रिपोर्ट: 21 अक्टूबर 2025)
लेखक: संवाददाता — विकाश कुमार
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🌆 सहरसा: कोसी की धरती पर बदलते हालात की झलक
बिहार के उत्तर-पूर्वी हिस्से में बसी सहरसा जिला, जिसे कभी “कोसी की राजधानी” कहा जाता था, आज फिर सुर्खियों में है। यहां की मिट्टी उपजाऊ है, लोग मेहनती हैं, लेकिन हर साल आने वाली बाढ़ और सरकारी लापरवाही ने इसे बार-बार पीछे धकेला है। आज की तारीख़ — 21 अक्टूबर 2025 — सहरसा कई घटनाओं का गवाह बना, जिनमें राजनीति, प्रशासनिक गतिविधि, शिक्षा, रोजगार और सामाजिक संघर्ष सब शामिल हैं।
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🚧 1️⃣ गंगा-कोसी लिंक प्रोजेक्ट में देरी से जनता नाराज़
सहरसा के महिषी और सिमरी बख्तियारपुर प्रखंडों के बीच प्रस्तावित गंगा-कोसी लिंक प्रोजेक्ट का कार्य एक बार फिर रुक गया है। जल संसाधन विभाग के अनुसार, तकनीकी अड़चन और ठेकेदार कंपनी के भुगतान विवाद के चलते कार्य ठप पड़ा है।
स्थानीय ग्रामीणों ने नाराज़गी जताई और कहा, “हर साल आश्वासन मिलता है लेकिन नहर सूखी रहती है। अगर पानी आ जाए तो खेती में क्रांति आ सकती है।”
किसानों ने ब्लॉक कार्यालय के बाहर धरना दिया और प्रशासन को चेतावनी दी कि यदि काम जल्द शुरू नहीं हुआ तो वे ‘कोसी जल सत्याग्रह’ का आयोजन करेंगे।
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🏫 2️⃣ सहरसा कॉलेज में छात्र आंदोलन — फीस वृद्धि पर बवाल
बी.एन.एम. कॉलेज सहरसा में छात्रों ने फीस वृद्धि और शिक्षक की कमी को लेकर आज प्रदर्शन किया। कॉलेज गेट पर छात्रों ने “शिक्षा हमारा अधिकार है” के नारे लगाए।
छात्र नेता अमित झा ने कहा,
> “हमारे यहां शिक्षक नहीं, लैब नहीं, और ऊपर से फीस बढ़ा दी गई है। ये सरासर अन्याय है।”
कॉलेज प्रशासन ने कहा कि राज्य विश्वविद्यालय की नई नीति के तहत फीस संशोधित की गई है, लेकिन छात्रों ने इसे ‘शोषण नीति’ बताया।
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🏥 3️⃣ सदर अस्पताल में अव्यवस्था — डॉक्टर गायब, मरीज बेहाल
सहरसा के सदर अस्पताल की हालत लगातार बिगड़ रही है। मरीजों की भीड़ है, लेकिन डॉक्टरों की संख्या आधी से भी कम।
आज सुबह प्रसव कक्ष में एक महिला को समय पर इलाज न मिलने से परिजनों ने अस्पताल में हंगामा किया।
मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी (CMO) ने जांच का आदेश दिया है, लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि यह केवल “कागज़ी जांच” बनकर रह जाएगी।
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🌾 4️⃣ कोसी में फिर बाढ़ का खतरा — ग्रामीणों में दहशत
कोसी नदी का जलस्तर पिछले 24 घंटों में 30 सेंटीमीटर बढ़ गया है। बालूगंज, नवहट्टा और सलखुआ क्षेत्र के कई गांवों में पानी घुसने लगा है।
ग्रामीण अब भी 2008 की भयावह बाढ़ को नहीं भूले हैं, जब सहरसा का बड़ा हिस्सा जलमग्न हो गया था।
इस बार प्रशासन ने दावा किया है कि “तटबंध मजबूत हैं”, लेकिन स्थानीय लोगों को भरोसा नहीं।
महिला समूहों ने कहा,
> “हर बार हम ही डूबते हैं, नेता बस हेलीकॉप्टर से देखकर चले जाते हैं।”
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🗳️ 5️⃣ चुनावी हलचल — सहरसा बना राजनीतिक केंद्र
बिहार विधानसभा चुनाव करीब आने के साथ सहरसा का माहौल गर्म है।
जेडीयू, आरजेडी और बीजेपी — तीनों दलों ने यहां अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय कर दिया है।
जनसुराज पार्टी के प्रशांत किशोर ने भी आज सहरसा में जनसभा की, जहाँ उन्होंने कहा,
> “सहरसा में विकास नहीं, वोट बैंक की राजनीति हुई है। अब समय है बदलाव का।”
दूसरी ओर, तेजस्वी यादव ने वीडियो संदेश में कहा कि “कोसी के विकास के बिना बिहार का सपना अधूरा है।”
वहीं जेडीयू के नेताओं ने नीतीश कुमार की उपलब्धियों को गिनाते हुए कहा कि “सहरसा को मॉडल जिला बनाने की योजना पर काम चल रहा है।”
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🚜 6️⃣ किसान आंदोलन की नई लहर — ‘धान नहीं बिक रहा’
कोसी क्षेत्र के किसानों को इस बार अपनी उपज का सही मूल्य नहीं मिल रहा। धान की सरकारी खरीद में गड़बड़ी और प्राइवेट व्यापारियों के खेल ने किसानों को सड़कों पर उतरने पर मजबूर कर दिया है।
सहरसा के सोनबरसा और बनगांव में किसानों ने बाजार समिति कार्यालय पर ताला जड़ दिया।
किसान नेता महेंद्र यादव ने कहा,
> “हमने मेहनत से फसल उगाई, लेकिन सरकार ने हमें लूटने के लिए छोड़ दिया।”
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🚌 7️⃣ ट्रैफिक और सड़कों की हालत — शहर बना जाम का शहर
सहरसा शहर की सड़कों पर दिनभर जाम लगा रहता है। खासकर बस स्टैंड, अस्पताल रोड और स्टेशन चौक पर ट्रैफिक व्यवस्था चरमरा गई है।
लोगों का कहना है कि पुलिस सिर्फ वीआईपी मूवमेंट के समय ही सड़क पर दिखाई देती है।
व्यवसायियों ने नगर निगम से गुहार लगाई है कि “सहरसा को स्मार्ट सिटी नहीं तो कम से कम क्लीन सिटी तो बनाया जाए।”
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⚖️ 8️⃣ अपराध में वृद्धि — पुलिस की नींद उड़ गई
पिछले एक हफ्ते में सहरसा में तीन बड़ी चोरी और एक हत्या की घटना हुई।
बीती रात सिमरी बख्तियारपुर में एक ज्वेलरी दुकान लूटी गई।
एसपी सहरसा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा,
> “अपराधियों को बख्शा नहीं जाएगा, जल्द गिरफ्तारी होगी।”
लेकिन जनता का भरोसा पुलिस पर कम होता जा रहा है।
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🌐 9️⃣ डिजिटल बिहार योजना — सहरसा में धीमी रफ्तार
सरकार के “डिजिटल बिहार मिशन” के तहत हर पंचायत में वाई-फाई और ऑनलाइन सुविधा देने का वादा किया गया था, लेकिन सहरसा के आधे से अधिक पंचायत आज भी इंटरनेट से कटे हैं।
युवा कहते हैं कि “नेटवर्क नहीं है, तो ऑनलाइन फॉर्म कैसे भरें?”
सरकार की योजनाएं फ़ाइलों में हैं, ज़मीन पर नहीं।
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🌳 🔟 पर्यावरण संकट — पेड़ों की कटाई से बढ़ा तापमान
सहरसा में विकास के नाम पर पेड़ काटे जा रहे हैं। खासकर रेलवे स्टेशन के पास और कोसी बांध क्षेत्र में।
पर्यावरण प्रेमियों ने आज जिलाधिकारी को ज्ञापन दिया।
उनका कहना है कि यदि यही हाल रहा तो आने वाले वर्षों में “सहरसा हरा नहीं, धूल का शहर बन जाएगा।”
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💬 स्थानीय लोगों की जुबानी: “सहरसा अब जागे”
एक बुजुर्ग किसान बोले,
> “हमने देखा है बाढ़ भी, सूखा भी, लेकिन अब सबसे बड़ी बाढ़ है बेरोजगारी की।”
एक कॉलेज छात्रा ने कहा,
> “सहरसा में टैलेंट की कमी नहीं, मौका नहीं मिलता।”
एक व्यापारी बोले,
> “राजनीति बदलती है, लेकिन सड़क और सफाई नहीं बदलती।”
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🕊️ निष्कर्ष: संघर्ष की धरती पर नई उम्मीद
सहरसा की कहानी दर्द और जज्बे दोनों की कहानी है। यहां बाढ़ आती है, लेकिन उम्मीदें कभी नहीं डूबतीं।
यह जिला बिहार की उस आत्मा का प्रतीक है जो हर कठिनाई में भी मुस्कुराती है।
अब ज़रूरत है कि सरकार और जनता दोनों मिलकर “नया सहरसा” बनाएं — जहाँ शिक्षा
, स्वास्थ्य, खेती और रोज़गार सब साथ चले।
> सहरसा सिर्फ एक जिला नहीं — यह कोसी की आत्मा है, जो हर लहर में कहती है,
“हम डूबे नहीं हैं, बस फिर से उभर रहे हैं।”


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