एग्जिट पोल की खुशखबरी के बीच NDA में टेंशन: बिहार में अलार्म बजा रहा यह आंकड़ा, क्यों बढ़ी सियासी बेचैनी
दोस्तों, आज हम बात करेंगे बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के उस सियासी माहौल की,
जहां एग्जिट पोल्स ने तो NDA को राहत की सांस दी है,
लेकिन कुछ चौंकाने वाले आंकड़े ऐसे भी हैं, जिन्होंने नीतीश कुमार और भाजपा खेमे की चिंता बढ़ा दी है।
यानी एग्जिट पोल की “खुशखबरी” के बावजूद NDA के अंदर अलार्म बज चुका है — और वजह है जनता का मौन मूड, सीटवार ट्रेंड और मत प्रतिशत में गिरावट।
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एग्जिट पोल ने दी राहत, लेकिन अधूरी खुशी
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के एग्जिट पोल्स में NDA को बढ़त दिखाई गई है।
अधिकांश सर्वे में एनडीए को 105 से 115 सीटें और महागठबंधन को 110 से 120 सीटें दी गई हैं।
यानी मुकाबला कांटे का है, और कोई भी गठबंधन साफ बहुमत से बहुत दूर दिख रहा है।
भले ही एनडीए खेमे में इसे “जनता का भरोसा” बताया जा रहा हो,
लेकिन अंदरखाने में यह बात साफ है कि
मत प्रतिशत (vote share) और क्षेत्रवार रुझानों ने पार्टी के रणनीतिकारों की नींद उड़ा दी है।
एग्जिट पोल की यह “खुशखबरी” NDA के लिए उतनी मजबूत नहीं जितनी दिख रही है।
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क्यों बढ़ी NDA की टेंशन — जानिए वो आंकड़े जो खलबली मचा रहे हैं
1. मत प्रतिशत में गिरावट
एग्जिट पोल रिपोर्ट्स के मुताबिक,
एनडीए का कुल वोट प्रतिशत इस बार लगभग 36–38% के बीच दिखाया जा रहा है,
जबकि 2020 के चुनाव में यह आंकड़ा 42% से ऊपर था।
यानी करीब 4–5% वोट शेयर की गिरावट — जो कई करीबी सीटों पर खेल पलट सकती है।
चुनावी विश्लेषक मानते हैं कि यह गिरावट “मूक नाराज़गी” का संकेत है,
जहां मतदाता खुलकर विरोध नहीं करता, लेकिन वोटिंग बूथ पर “खामोश बदलाव” कर देता है।
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2. युवाओं और पहली बार वोट देने वालों का रुझान
बिहार के एग्जिट पोल डेटा में सबसे बड़ा झटका NDA को युवाओं के बीच से मिला है।
18 से 35 साल के मतदाताओं में से लगभग 55% वोट तेजस्वी यादव के महागठबंधन की ओर जाते दिख रहे हैं।
यह वर्ग वही है जो रोजगार, शिक्षा और पलायन के मुद्दों पर सबसे अधिक सक्रिय है।
भले ही NDA की ग्रामीण पकड़ कायम है,
लेकिन शहरी इलाकों और युवा वोटर्स में गिरावट चिंता का विषय है।
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3. सीमांचल और कोसी क्षेत्र में कमजोर प्रदर्शन
सीमांचल, पूर्णिया, किशनगंज, अररिया और कोसी बेल्ट की सीटों पर
एग्जिट पोल्स में एनडीए पिछड़ता दिख रहा है।
यह क्षेत्र अल्पसंख्यक और पिछड़े वर्गों के मतदाताओं वाला इलाका है,
जहां महागठबंधन और छोटे दलों का प्रदर्शन इस बार बेहतर बताया जा रहा है।
पिछले चुनाव में यहां से एनडीए को अच्छी बढ़त मिली थी,
लेकिन इस बार लोजपा (रामविलास) और एआईएमआईएम जैसे दलों ने समीकरण बदल दिए हैं।
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4. छोटे सहयोगी दलों का कमजोर असर
एनडीए के लिए एक और चिंता का कारण है उसके सहयोगी दलों की गिरती पकड़।
कुछ सीटों पर जेडीयू और बीजेपी के बीच अंतरिक असंतोष की खबरें आईं,
और कई जगहों पर कार्यकर्ता एकजुटता की बजाय “टिकट कट” नाराज़गी में घर बैठे।
वहीं, वीआईपी और हम जैसे छोटे दल इस बार उतनी प्रभावशाली भूमिका नहीं निभा पाए।
इसका असर कुल वोट शेयर पर सीधा पड़ा है।
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5. एंटी-इंकम्बेंसी फैक्टर
नीतीश कुमार की लंबे शासन काल के कारण
एंटी-इंकम्बेंसी (जनता की थकान) का असर साफ देखा जा रहा है।
भले ही नीतीश विकास योजनाओं का हवाला दे रहे हैं,
लेकिन जनता के एक हिस्से में यह भावना है कि “अब बदलाव की ज़रूरत है।”
तेजस्वी यादव इसी मूड को कैश कर रहे हैं,
और एग्जिट पोल्स में महागठबंधन को जो बढ़त दिखाई दे रही है,
वह इसी बदलाव की लहर से प्रेरित है।
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NDA कैंप में चिंता क्यों? अंदरूनी समीक्षा शुरू
जानकारी के मुताबिक,
एग्जिट पोल के बाद भाजपा और जेडीयू के रणनीतिकारों ने
अंदरूनी सीटवार समीक्षा शुरू कर दी है।
उनका ध्यान अब उन सीटों पर है जहाँ हार-जीत का अंतर बहुत कम हो सकता है।
पार्टी सूत्रों के अनुसार —
“हमें एग्जिट पोल में राहत जरूर है, लेकिन यह जीत की गारंटी नहीं।
कई सीटों पर मामूली वोटों से फर्क पड़ सकता है।”
यानी एनडीए अब पोस्ट-पोल एलायंस और बैकअप स्ट्रैटेजी पर विचार कर रहा है,
ताकि अगर बहुमत से कुछ सीटें कम पड़ जाएँ,
तो छोटे दलों या निर्दलीयों के सहारे सरकार बनाना आसान रहे।
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तेजस्वी यादव का कैंप — उत्साह में लेकिन सावधान
दूसरी तरफ, तेजस्वी यादव का महागठबंधन एग्जिट पोल से उत्साहित जरूर है,
लेकिन उन्होंने भी कार्यकर्ताओं को “ज्यादा आत्मविश्वास” में आने से मना किया है।
उनका बयान था —
“हम जनता के जनादेश पर भरोसा करते हैं, पोल्स पर नहीं।
13 नवंबर को असली फैसला होगा।”
हालांकि RJD के अंदर भी जोश है,
क्योंकि एग्जिट पोल के आंकड़ों ने साफ कर दिया है
कि महागठबंधन ने ग्रामीण इलाकों में मजबूत प्रदर्शन किया है।
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राजनीतिक विश्लेषण — हंग विधानसभा की ओर बढ़ता बिहार
अगर एग्जिट पोल के ये रुझान सही साबित होते हैं,
तो बिहार में इस बार हंग विधानसभा बनना तय है।
ऐसे में NDA के सामने चुनौती दोहरी होगी —
एक तरफ जनता की नाराज़गी को संभालना,
दूसरी तरफ सहयोगियों को साथ रखना।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि
“अगर नीतीश कुमार को 120 सीटों से कम मिलती हैं,
तो सरकार बनाना आसान नहीं होगा।
राजनीति में जोड़-तोड़ और गठबंधन की नई कवायद शुरू हो सकती है।”
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जनता का मूड — भरोसा या बदलाव?
बिहार की जनता ने इस बार संकेत मिश्रित दिए हैं।
गाँवों में नीतीश कुमार की योजनाएँ अब भी असरदार हैं,
लेकिन शहरों और युवाओं में बदलाव की लहर साफ दिखाई दे रही है।
यानी जनता ने इस बार पूरी तरह किसी एक पक्ष को समर्थन नहीं दिया,
बल्कि एक संतुलित जनादेश दिया है —
जहाँ हर दल को अब अपनी कमियों को सुधारना होगा।
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निष्कर्ष — NDA के लिए चेतावनी की घंटी
एग्जिट पोल्स में NDA को राहत जरूर मिली है,
लेकिन इन आंकड़ों के भीतर छिपे सिग्नल खतरे की घंटी हैं।
मत प्रतिशत में गिरावट, युवाओं की दूरी, सीमांचल में कमजोर पकड़
और एंटी-इंकम्बेंसी जैसे कारक बताते हैं कि
भले ही सत्ता की कुर्सी पास दिख रही हो,
पर जीत की राह उतनी आसान नहीं।
13 नवंबर को जब वोटों की
गिनती शुरू होगी,
तो NDA के लिए हर सीट “टेंशन सीट” बन सकती है।
क्योंकि इस बार जनता ने चुप रहकर वोट दिया है —
और बिहार की खामोशी हमेशा इतिहास बदल देती है।

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